यहां सब बिकता है...
ये कलयुग है यारों, यहां सब बिकता है..
वफा की बेवफ़ाई बिकती हैं!
इंसान में छुपी सच्चाई बिकती हैं!
मेहनत से पहले चतुराई बिकती हैं!
जिसके पिता ने अपनी किडनी बेच कर गुड़िया के हाथ पीले किए...
ससुराल में जाके उसकी अच्छाई बिकती हैं!
यहाँ हर लड़के को सुंदर लड़की की चाह है, पर बेटी की साँसे माँ के पेट में ही बेच दी जाती है!
ये कलयुग है यारों, यहाँ सब बिकता है.
यहाँ शादी में लड़के की बोली लगती है..
तब ही तो दहेज रूपी माला उसके गले पे चौड़ी लगती है.!
यहाँ बाल-विवाह, दहेज.. जैसी
रूढ़िवादी सोच आज भी बिकती हैं!
तब ही तो खुले बाजार इसकी बोली लगती है!
अरे ये प्रथा तो बहुत पुरानी है यारों....
युधिष्ठिर ने तो अपनी पत्नी बेची थीं!
ये कलयुग है यारों...
यहाँ गोरी चमड़ी से लेके, इंसान की रूह तक बिकती हैं!
ऐ इन्सान खुद को इतना बुलंद बना...
कि तेरी अच्छाई बिके...
तेरे अंदर छुपी सच्चाई बिके..
कब तक तु ख़ुद की बोली लगा के..
किसी बेटी के पिता का स्वाभिमान बेचेगा!
कभी खुद के अंदर के इंसानियत रूपी इंसान को बेच कर देख!
ये कलयुग है यारों,यहाँ यही सब चलता है...
ये कलयुग है यारों, यहाँ सब बिकता है
यहाँ सब बिकता है......
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