समय:-
ना राजा हू ना रंक हू मै तो बस एक समय रूपी संख हू, देखे है मेने युग कयी सतयुग से लेके कलयुग यही....
हुवे अनेक योद्धा मेरे दामन में उस तपते ग्रीष्म ऋतु से शीतल शावन में, देखा है मेने इस श्रीष्टि के संचार को उसके आगमन से उसके संहार को.....
धन दौलत से अनेक है मोल मेरा, हीरे से है अधिक चमक मेरे ज्योत की जिसने है समझा मेरे मोल को हो गया अनमोल वही....
मेने देखा है भगत सिंह जैसे बलवान को महात्मा गांधी जैसे अहिंसावादी इंसान को, हुवे अनेक वीर योद्धा मेरे दामन मै महाराणा प्रताप से लेके पृथ्वीराज चौहान तक....
मै तो समय हूं है चलना मेरा काम अगर मै जो रुक जाऊ तो थम जाएँ ये संसार, सांसों से तेज मै चलती हूँ ना रुकती हूँ ना थमती हूं....
जिसने ना समझा मोल मेरे होने का वो राजा से है रंक हुआ और जिसने है समझा महत्व मेरे होने का उस इंसान ने जिया इस अमूल्य समय के दामन को जो था अमूल्य सोने सा....
बिना रुके बिना झुके बस चलना मेरा काम है जो मै रुक जाऊ तो समझो ये धरती का संहार है, इस युवा पीढ़ी को बस ये समझाना है के जो चला गया समय वो फिर कभी लौट कर नहीं आना है....
बस केहना सबसे इतना है कि जियो इस समय को ऎसे जैसे हो ये अंतिम पल इस धरती का
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