नैनों में जिसके मधुशाला थी, ऐसी उसकी झांकी थी|
उस बारिश में बहती उसकी माया थी, जिसमे उसकी काया थी|
गुलाब सी पंखुड़ियों जैसे होठ थे जिसके, जिनमे से निकलती मधुशाला थी|
पानी सी निर्मल वाणी थी जिसकी, जिन्हें सुन कोयल भी गाया करती थी|
वो स्नेह्सागर से आई थी बस प्यार की तलाश में, बहुत ढूंढा पर मिला ना कोई अनमोल उसे सिर्फ मिली मोह माया थी|
एक बात थी मेरे मन में भी, मुझे मिलना था उससे कही दूर गगन में|
जहाँ सिर्फ दो राहों का आगमन होता, एक वो होती और एक में होता|
मिट्टी के इस पिंज़र को तोड़ जाना था उसे तो दूर कही, बस और ढूंढ रही वो साथी थी|
ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||
प्रेम हुआ जिसके बातो से जिसकी मधुर आवाजों से, ऐसी उसकी वाणी थी|
मेरे स्वप्न में वो बस आती थी, क्योकि उससे पावन जगह ना कहीं और वो पाती थी|
कुछ कहना था उससे शायद, जो ना कभी वो कह पाती थी|
इस मोह माया की दुनिया से दूर उसे जाना था, एक सुन्दर सा महल बनाना था|
दूर देश से वो आई थी, जिसमे उसकी रूह समायी थी|
रैना ने जिसे चाहा था, नदियों ने जिसे सवारा था|
ऐसी थी वो ऐसी थी, जिसे मैने चाहा था|
चाह रह गयी बस मन में, कभी ना मैने उसे पाया था|
वो ना थी इस दुनिया की ना उस पार की, कही दूर स्वर्गलोक से आई थी|
सब छल कपट से दूर मोह-माया से परे, ऐसी उसकी काया थी|
सिखाना था उससे कुछ इंसानों को, कि कुछ नहीं रखा इन बातो में, इन् भूली बिसरी रातो मे|
कुछ कर गुज़र ऐसा की दुनिया याद करे, बस यही उसे सिखाना था|
बिना मदिरा पान के नशा जिसे चढ़ता था, ऐसी वो मधुशाला थी|
जिसकी झलक मात्र को तरसी पूरी भूमि थी, ऐसी उसकी सूरत थी|
कहीं मिले फिर वो मुझे तो बस कहना उससे इतना था, बहुत प्रेम किया है तुझसे बहुत प्रेम किया|
बस एक पल के लिए लौट आ उन् स्वप्नलोक में, जहाँ कभी तू आती थी|
ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||
नैनों में जिसके मधुशाला थी, ऐसी उसकी झांकी थी|
उस बारिश में बहती उसकी माया थी, जिसमे उसकी काया थी|
गुलाब सी पंखुड़ियों जैसे होठ थे जिसके, जिनमे से निकलती मधुशाला थी|
पानी सी निर्मल वाणी थी जिसकी, जिन्हें सुन कोयल भी गाया करती थी|
वो स्नेह्सागर से आई थी बस प्यार की तलाश में, बहुत ढूंढा पर मिला ना कोई अनमोल उसे सिर्फ मिली मोह माया थी|
एक बात थी मेरे मन में भी, मुझे मिलना था उससे कही दूर गगन में|
जहाँ सिर्फ दो राहों का आगमन होता, एक वो होती और एक में होता|
मिट्टी के इस पिंज़र को तोड़ जाना था उसे तो दूर कही, बस और ढूंढ रही वो साथी थी|
ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||
प्रेम हुआ जिसके बातो से जिसकी मधुर आवाजों से, ऐसी उसकी वाणी थी|
मेरे स्वप्न में वो बस आती थी, क्योकि उससे पावन जगह ना कहीं और वो पाती थी|
कुछ कहना था उससे शायद, जो ना कभी वो कह पाती थी|
इस मोह माया की दुनिया से दूर उसे जाना था, एक सुन्दर सा महल बनाना था|
दूर देश से वो आई थी, जिसमे उसकी रूह समायी थी|
रैना ने जिसे चाहा था, नदियों ने जिसे सवारा था|
ऐसी थी वो ऐसी थी, जिसे मैने चाहा था|
चाह रह गयी बस मन में, कभी ना मैने उसे पाया था|
वो ना थी इस दुनिया की ना उस पार की, कही दूर स्वर्गलोक से आई थी|
सब छल कपट से दूर मोह-माया से परे, ऐसी उसकी काया थी|
सिखाना था उससे कुछ इंसानों को, कि कुछ नहीं रखा इन बातो में, इन् भूली बिसरी रातो मे|
कुछ कर गुज़र ऐसा की दुनिया याद करे, बस यही उसे सिखाना था|
बिना मदिरा पान के नशा जिसे चढ़ता था, ऐसी वो मधुशाला थी|
जिसकी झलक मात्र को तरसी पूरी भूमि थी, ऐसी उसकी सूरत थी|
कहीं मिले फिर वो मुझे तो बस कहना उससे इतना था, बहुत प्रेम किया है तुझसे बहुत प्रेम किया|
बस एक पल के लिए लौट आ उन् स्वप्नलोक में, जहाँ कभी तू आती थी|
ऐसी उसकी झांकी थी, ऐसी उसकी झांकी थी||
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