• Published : 09 Jun, 2017
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माँ... 

एक बात कहनी है तुझसे 

जो ना कही थी कबसे... 

 

तू है पावन मनभावन सी. 

जैसे ग्रीष्म ऋतु में सावन सी! 

 

एक प्यासे की तु प्यास है 

एक निर्धन की तु आश् है 

 

खुद झेल के अनेकों चोट अपने सीने पे... 

फिर भी तू मुस्कुराती है! 

 

तेरी इन्ही दया दृष्टी से ही तु माँ कहलाती है! 

 

छोड़ के सारे जीवन तु बस अपने दुलारे के चेहरे पे मुस्कान लाती है! 

 

त्याग दी सारी खुशियां तूने, 

तब ही जग जननी कहलाती है.... 

 

देख आज के सुपुत्र को वो मौन धारी भगवान भी बोल उठा.. 

कि ऐ माँ तु कैसे इतना दुख सह जाती है? 

 

माँ की ममता से बड़ा ना धर्म कोई ना तीर्थ ना मंदिर, 

जो सुबह-शाम माँ के चरण छुए वही धन्य होये... 

 

अभी भी समय है... 

संभल जा ऐ कलयुगी पूत,

 माँ की सेवा में जीवन निकाल तब ही जीवन सार्थक होये !

About the Author

Rahul

Joined: 29 May, 2017 | Location: , India

Write with the deep feeling of my heart ...

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