
मेरे मौला रे
खून खौला रे
हे भगवान रे
मैं शैतान रे
ये क्या किया ज़माने ने
खुद से मुझे जो तौला रे
मैं मसीहा नही
मैं कबीरा नही
मैं समंदर नहीं
मैं जजीरा नही
नाम मेरा नही
मुल्क मेरा नहीं
कौम मेरा नहीं
मेरा मज़हब नहीं
ज़ख्म देता हूँ मैं
जान लेता हूँ मैं
दर्द देखा नही
देखी पीड़ा नही
हर तरफ लाश है
आँख में तलाश है
कौन मारा गया
जो था मेरा गया
क्या पता क्या हुआ
क्या बचा क्या रहा
सब हुआ है धुँआ
हर दुआ कांच सी
जल गयी राख सी
जान नन्ही कहीं
है खिलौने कहीं
टूटती सांस थी
टूटी चप्पल कहीं
वो तड़पते आदमी
मौत का खौफ भी
मौत से कम नही
रो रही ज़िंदगी
रो रही ज़िंदगी
खून से है सनी
लाल है ये ज़मीं
ये ज़मीं वो ज़मीं
लाल है आसमा
मैं न इंसान हूँ
मैं तो पाषाण हूँ
मैं तो हैवान हूँ
मेरे मौला रे
खून खौला रे
हे भगवान रे
मैं शैतान रे
Copyright 2015 PoetShriramMurthi
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