"कुछ" नही हूँ
"कुछ नही" हूँ
क्या हूँ "खला"?
क्या हूँ भला?
जो न हो बना
जो न हो फना
ज्ञात में अज्ञात हूँ
अज्ञात में ज्ञात हूँ
जो "है" वो ही हूँ
जो "नहीं है" वो भी हूँ
"हूँ" भी और "नहीं" भी
बे शक्ल सा
ला फानी सा
शक्ल लेता हूँ
जाहीर करता हूँ
रक़्स करता हूँ
फिर शक्ल
बदल देता हूँ
हवा हूँ जैसे
दिखता नही हूँ
गुब्बारों(जीव) की,
शक्ल लेता हूँ
रक़्स करता हूँ
शक्ल कोई नहीं है
मैं जीता नहीं हूँ
मैं ज़िंदगी हूँ
वो पंछी ये शजर
ये मिटटी वो समा
वो फूल वो जानवर
वो नीला समंदर
वो बहर वो दरिया
पानी का हर क़तरा
Copyright2015 #PoetShriramMurthi
Comments