इल्म मुझे न बारिश का, न रास आते हैं बादल..
न दिखती है वो चमचमाती धुप, न लहराता है कभी आँचल...
कभी रूकती नदी सी हंसी, कभी सिलवटें खोलती हंसी..
कभी नभ में अनेक सितारे हैं..तो अभी अन्धकार का है काफिल..
जद्दोजेहद जो कभी खुद से थी..उसका मिला न कभी जवाब..
न मिला नभ में एक भी सितारा..न खुली कभी काली रात..
क्यूंकि इल्म मुझे न बारिश का...ना रास आते हैं बादल..
न दिखती है चमचमाती धुप..न लहराता है कभी आँचल..
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