सिलवटें ज़हन की तह हुई कुछ इस तरह..
हर पन्ने पर मानो कुछ लिख चूका इस तरह..
लिख चुके वो शब्द जो बरसों से महसूस होते हैं..
दिल की अर्ज़ से अब अनजाने भी मेहफ़ूज़ होते हैं..
काश तेरी आँखों में मैं वाही देख पाऊँ कुछ इस तरह..
तेरे मुह से मेरे लिए वो शब्द निकले थे जिस तरह..
वो शब्द जो कहते थे की हर ज़र्रा मेरा है..
वही शब्द इन सिलवटों में सिमट पाएं कुछ इस तरह..
सिमट जाएं इस तरह की भर जाए ये आगोश..
और फिर मैं भर पाऊँ उड़ान कुछ इस तरह..
इस तरह उड़ पाऊँ की वे सिलवटें खुल जाएं..
खुल जाएं इस तरह की कोई सिलवट रह न पाए..
शेहनाई की गूँज में अब किलकारी न समाए..
समझ जाए तू हर वो शब्द आज..
जो सिमट रहे हैं कुछ इस तरह..
कुछ इस तरह..
Aditi Sharma © 4-May-2006 (12:49 AM)
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