
उन बेरुखियों की क्या गुस्ताखी..
जिनकी नीव में खुदगर्ज़ी का मलहम हो..
क्या गुस्ताखी उन आंसुओं की..जिनके दर्द में रुखसत की स्याही और कलम हो..
लिखा गया हर शब्द उस कलम से..मात्र एक पहलु था..
न कभी हमदर्द था..न कोई शहनवाज़..
उन बेरुखियों की गुस्ताखी में, केवल खुदगर्ज़ी का मलहम था..
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