ये मैं किन सवालों से घिर जाता हूँ
जो हर शाम बे-मौत मर जाता हूँ
अँधेरा वो तारी इन आखों में है
कि अब रोशनी से भी डर जाता हूँ
किसी ने यूं छोड़ा लगा कर गले
कि छूते ही मैं बस बिखर जाता हूँ
जो भी वादे मैं रात में करता हूँ
सवेरे सवेरे मुकर जाता हूँ
तमाशाई दुनिया तमाशा हूँ मैं
न जाने मैं क्या ऐसा कर जाता हूँ
खुशी बाँट देता हूँ ग़म लेता हूँ
दुआएं लिए रोज़ घर आता हूँ
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