
यहाँ जी लिए तो किस बात पे
उम्मीद लगाये बेठे है नकबो के बाजार में
ताजपोशी यहाँ जालसाज़ों की होती है
और चीथड़े किये है शरीफो के गिरेवान के।।
पंजे से वार कोई आबरू पे करता है
हलफनामे में मुज़रिम हो तो नेता बनता है
जागेगा सवेरा कभी इस उम्मीद में रात ढलती है
आमो के दाम में यहाँ घुटलियां बिकती है।।
रस्सी सी छिलती है सच की किस्मत
और कुएं से बाल्टी झूठ की भरती है
शेहरो में यहाँ रावण के बसेरे है
जंगलो में कहीं राम भटकते है।।
हुड़दंग का मेला हर तीज त्यौहार पे लगता है
कावड़ कंधो पे निर्लजो के सजता है
दीवाली के धुंए सा हर कानून उड़ता है
कभी शहर बस्ते थे यहाँ अब इन गलियो में घुसने से खुदा भी डरता है।।
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