• Published : 27 Nov, 2015
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बह चले हम एक रोज़ हवा के संग मापने दुनिया के सरे रंग

ज़िन्दगी है ये कोई कब्र तो नहीं जो जी ले बस एक चौखट पे हम

रास्ता बेमोड़ ही सीधा चले तो बेरंग हो ये डगर

बस्ता न हो कंधो पे ,जाना न हो नयी जगह पे

तो फ़िज़ूल ये सफर है।।

 

ठण्ड की ठिठोलिया बंद कमरो में दफन होगई

 

वादियाँ पहाड़ियों की नक्शो में ग़ुम होगई

शेहरो की इमारते बेमतलब ही हठीली है

मेवाड़ के क़िलों की हतेली में सिमटी है

बेवजह क्यों क़ैद है अरमान वक़्त के दस्तानो में

डल की झील में  ढुँढलो खो गए पंखो को अपने।।

 

भागती धरती भी है रोज़ अपने मंडल में

 

फिर क्यों डरते है मंसूबे तेरे अभी झांकने से

जमे है क्यों तेरे कदम कुऍं

के  मेढक सेे

घूम लेता है वो भी बारिश की बूंदे चूमने

 

कम्बल से मुँह निकल के चल पड़ो खुद के वास्ते

 

मंज़िल  मिली तो अंत है जीने का लुत्फ़ तो है रास्ते।।

 

 

 

About the Author

Amit Tewari

Joined: 19 Jul, 2015 | Location: , India

I am a Software Engineer and   DU Computer Science pass out.. I watch world with curiosity, like to weave situations in my words.Love to imagine things, love to argue with myself , improve as a person, sing a song, write a song, write ...

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