विनम्रता के भाव से, एक प्याली चाय से,
कुछ इस कदर स्वागत हुआ ससुराल में !
टुकुर टुकुर देखे बड़ी बहन उनकी,
जैसे ढूंढ लिए हो कई खोट मेरी चाल ढाल में !
बहूत ठाठ से पूछा ससुर साहब ने,
कुछ कमाते हो या पहने है सूट बूट भी किराये के !
दूर बैठे वो शरारती से अंदाज़ में,
मन ही मन सोचे आज आया उठ पहाड़ के नीचे !
सवालो की बौछार से, भीगे हम बिना बरसात के,
माथे से बहे पसीना, बयान करे सरे हालात को !
बारी थी अब बड़े भाई की, शक के तराज़ू में तोले वो हमारे हर जवाब को,
थानेदार के हाथो फ़स गया हो कोई खुख्यात चोर जो !
हास्यपाद इस माहौल पे फिर आगमन हुआ नए किरदार का,
चाय और समोसों ने मानो निभाया फ़र्ज़ सच्चे यार का !
अब थोड़ा ध्यान भटका,
मुझसे नज़र हटी और समोसों पे गड़ी !
विचारो के भवर में खोया मैंने आज जाना,
क्यों ग़ालिब ने इश्क़ को आग का दरिया कहा !
क्यों शादी को बड़े बुज़र्गो ने सबसे बड़ी परीक्षा कहा !
जो ही चाय की आखरी प्याली निपटी,
मेरी हालत फिर घोड़े से खचर की थी !
पर इस बार शायद उन्हें रहम आया,
अब जाके शायद कुछ हल्का फुल्का मैं पसंद आया !
..या सब समोसों का कमाल था !
अब जाके जान में जान आई,
मानो शेर की मांद से ज़िंदा निकल आया !
सुन्दर से लिबाज़ में बैठी मेरी होने वाली पत्नी, मेरे पास आई !
और पूछी कैसी रही आज की शाम,
मैंने कहा मज़ेदार रही, काफी उम्दा !
..झूठ बोलने की कला भी खूब काम आई !
अचानक अलार्म बजा और आँख खुली,
फिर समझ आया ये तो सपना था, जो मेरे बीते कल से मिल के आया था!
पहली शादी की सालगिरह की शुरुवात अच्छी थी !!
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