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इश्क़ में ना मज़बूर कीजिये
इतना भी ना असर कीजिए
दिल में कुछ इस कदर बसर कीजिये
हमसे खैर-ऐ-दिल न पूछिये
अपनी आफ्ताबी कुछ तो बंदिश कीजिये।।
जाने क्यों आज सांसें गर्म है
जाने क्यों नज़रे झुकी शर्म है
ऐसे मौकों पे क्या ख़बर क्या कीजिये
बात ना हो तो इस दिल की कसक क्या कीजिये
रूबरू तज़ुर्बे इश्क़ की कमी क्या कीजिये।।
तुम्हे सोच के ही सुकूँ कामिल है
पाने की तमन्ना खोने की वजह कुछ कम है
ऐसे ही लिफाफों में इश्क़ क़ैद रहने दीजिये
लफ्ज़ जो दरमियां है उनकी अदब रहने दीजिये
न क़बूल कीजिये न दूर कीजिये
इश्क़ है इतना भी ना मज़बूर कीजिये।।
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