यादों के बादल.......
आज सहर होते ही कुछ यादो के बादल मंडरा रहे थे। आखँ भी नम थी जैसे कुछ खो गया था कहीं।
चादर को झाड़ा फिर तकिये को एक कोने से उठाते हुए देख कर नीचे कुछ महसूस हुआ, कुछ है दबा हुआ सा, पर कुछ दिखाई नहीं दिया।
शायद ख्वाब ही होगा, कल रात को उपर टाट पे एक पुराना रखा हुआ बस्ता देखा था। गाँठ लगी थी, शायद कई सालों से किसी ने छुआ नहीं था, धूल भी काफी जमी थी।
नीचे उतारा और झाड़ कर किसी तरह गिरह खोली तो कुछ पुराने नीले रंग के लिफाफे और पोस्ट कार्ड मिले जो कभी माँ-पापा और करीबी दोस्तो ने लिखे थे। पढते पढते फिर कब आखँ लग गई पता ही नहीं चला।
ये ख्वाब भी बडे अजीब होते है, कब तस्सवुर को अहसास बना देते है पता ही नहीं चलता, जैसे कल की ही कोई बात हो।
कभी वक्त का अहसास ही नहीं हुआ कि जिंदगी का सफर काफी तय कर चुका हूँ।
बस कुछ पुरानी यादे ही बाकी है, आज कल तो खत लिखने का चलन नहीं है और अब डाकिये भी कहीं दिखाई नहीं पढते।
सब कुछ जाने सिमट सा गया है पर दिलो के दरमियाँ फाँसले कई मील लंबे से दीख पढते हैं.........
तस्सवुर - imagination
Comments