वस्ल पर मुझको इक बात याद आती है,
कि जिंदगी मुझको सराब नज़र आती है।
यूँ तो धुँधला गई है बढ़ती नज़र मेरी वले,
ख़्वाबों मे उनकी तस्वीर नज़र आती है।
याँ उनकी यादों के मौसम लौटे हैं खुदा,
अब तो दिन मे भी रात नज़र आती है।
किसको खबर है अपनी मतलबी जहाँ में,
जिधर देखो शम-ए-मज़ार नज़र आती है।
आहिस्ता-आहिस्ता दम जाता है "वीनू",
घड़ी मिलने की शायद पास नज़र आती है।
वस्ल- यार से भेंट।
सराब - माया, धोखा, छल।
वले- लेकिन।
याँ- इधर।
शम-ए-मज़ार - कब्र का दीपक।
आहिस्ता-आहिस्ता - धीरे-धीरे।
वीनू - शायर।
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