इक तेरी याद के सिवा कोई चारा ना रहा,
हाय कमबख़्त इश्क का ज़माना ना रहा।
ज़िगर मे उठते अब क्या-क्या सवाल है,
याँ गम-ए-जिंदगी का ठिकाना ना रहा।
अहल-ए-जहाँ पर जो हम करते यकीन,
उनकी ही मोहब्बत का सहारा ना रहा।
हम तो मोहब्बत से ही पेश आये सनम,
जब उनका ही गलियों से रवाना ना रहा।
जो कह कर ना पहुँचे वो वादे पर अपने,
हम-राहो पर उनका ही ठिकाना ना रहा।
दिल ही मे रश्क-ए-अहल-ए-खुलूस,
जो खुदा का दिल मे ठिकाना ना रहा।
हाय दिल मोहब्बत मे क्या-क्या ना सहा।
वो लुत्फ-ए-वस्ल ओ अब याराना ना रहा,
जिंदगी कई शक्ल से गुज़रती रही 'विनोद',
तुझमे और मुझमे कोई दीवाना ना रहा।
अहल-ए-जहाँ - generous people
रवाना - movement, गुज़रना
रश्क-ए-अहल-ए-खुलूस - jealousy in generous people.
लुत्फ-ए-वस्ल - happiness of meeting.
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