डूब गया यादो में थक कर
चेतना के भीतर दबी उन लम्हो में ,
क्या हुआ उन सपनो का
जो देखा था उस मुस्कुराते मुखड़े ने |
सब टूट गए सब छूट गये
अब पहुंच गया इस मोर पे ,
रास्ते अब सिमित है
जिंदगी को जीने के |
याद करता हु में वो लम्हा
जब मुख मेरा चमकता था ,
अब बैठ मायुश ,निर्जीव सा
चेतना में डूब रहा |
काश में वो पल फिर से जी पाता
जहा मैं खेतो में कूद रहा
अब कैद सा लगने लगा है जिंदगी
बचपन फिर से जीना चाहता हूँ ,
मैं फिर से खुले पंछी की तरह
अपने आशाओं मैं उड़ना चाहता हु |
जिंदगी जीना का सोचा था
पर में तो इसमें जूंझ रहा ,
औरो के उम्मीदे के नीचे
मैं अब दब कर थक रहा
अब तो उन सुनहरे यादो का ही सहारा
जिसमे मैं अब डूब चला |
यादो मे मैं पतंग की डोर संभालता हूँ ,
अपनी नन्हे हाथो से ,
पर मैं अब कटपुतली बन गया हु
जीवन के इन हालातो से |
पर जब मैं सोचने लगा बचपन हमेसा जीता
तब संतोष मुख पे होता ,
पर देख लालसा उन कोमल आँखों मैं खुद के बड़े
होने की
जीवन का नियम मैं समझ रहा |
स्थिर हुआ तन मन ,आयी नयी ऊर्जा
संघर्ष जीवन क अभिन्न अंग है
ये तो बस अब तक सुना था ,
अब यादो से जागकर ,
अब मैं इसका अनुभव ले रहा |
यादे है यादे ही रहेंगे
जब कोई साथ न देगा,तुम्हारा यही साथ निभाएंगे
मान लिया पहचान लिया , ऐसे यादे ही बनाना
यह ठान लिया
जीना इसी को कहते है ये समझकर
में अपनी एक नए पथ की और चल पड़ा |
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