• Published : 25 Apr, 2022
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डूब गया यादो में थक कर

चेतना के भीतर दबी उन लम्हो में ,

क्या हुआ उन सपनो का

जो देखा था उस मुस्कुराते मुखड़े ने |

 

सब टूट गए सब छूट गये

अब पहुंच गया इस मोर पे ,

रास्ते अब सिमित है

जिंदगी को जीने के |

 

याद करता हु में वो लम्हा

जब मुख मेरा चमकता था ,

अब बैठ मायुश ,निर्जीव सा

चेतना में डूब रहा |

काश में वो पल फिर से जी पाता

जहा मैं खेतो में कूद रहा

 

अब कैद सा लगने लगा है जिंदगी

बचपन फिर से जीना चाहता हूँ ,

मैं फिर से खुले पंछी की तरह

अपने आशाओं मैं उड़ना चाहता हु |

 

जिंदगी जीना का सोचा था

पर में तो इसमें जूंझ रहा ,

औरो के उम्मीदे के नीचे

मैं अब दब कर थक रहा

अब तो उन सुनहरे यादो का ही सहारा

जिसमे मैं अब डूब चला |

 

यादो मे मैं पतंग की डोर संभालता हूँ ,

अपनी नन्हे हाथो से ,

पर मैं अब कटपुतली बन गया हु

जीवन के इन हालातो से |

 

पर जब मैं सोचने लगा बचपन हमेसा जीता

तब संतोष मुख पे होता ,

पर देख लालसा उन कोमल आँखों मैं खुद के बड़े

होने की

जीवन का नियम मैं समझ रहा |

 

स्थिर हुआ तन मन ,आयी नयी ऊर्जा

संघर्ष जीवन क अभिन्न अंग है

ये तो बस अब तक सुना था ,

अब यादो से जागकर ,

अब मैं इसका अनुभव ले रहा |

 

यादे है यादे ही रहेंगे

जब कोई साथ न देगा,तुम्हारा यही साथ निभाएंगे

मान लिया पहचान लिया , ऐसे यादे ही बनाना

यह ठान लिया

जीना इसी को कहते है ये समझकर

में अपनी एक नए पथ की और चल पड़ा |

 

                                    

About the Author

Aman Kumar Jha

Joined: 05 Apr, 2022 | Location: Kolkata, India

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