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माया
भाग १
उठा एक भोर परम मित्र मेरा
लगा आलमारी में कुछ टटोलने
फिर देख एक डायरी पुराणी
भाव उसका लगा मचलने
दिख रहा मानो किसी माया में खुद को लगा धकेलने
जैसे गलानि हो रही हो उसे किसी बात की
मानो अंदर ही अंदर कुरेद रहा पीरा दुविधा की
किस बात की दुविधा है उसे ? ये तो अभी मुझे जानना था
अपने मित्र की असमंजश समझ मुझे उसे सुलझाना था
मेरे हट कर जाने से ,उसने सुनाई अपनी राग
राग उसके भुत की ,एक आशा की और जिज्ञासा की
समरण माया में डूब वो बोला
"ये डायरी मेरे जीवन में असफल होने का प्रमाण
इसमें लिखा है मेने अब कभी न पुरे होने वाले अरमान है "
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