बैठ यादो में खोकर , विस्मय हो कर
तुम देख रहे अपनी परिस्थिति को ,
नहीं है कोई दिशा दिखाने वाला ?
क्यों बैठा है अस्त सूर्य सा मुख लेकर ?
लगता है अकेले पर गए हो तुम ,
इस मतलबी दुनिया में
क्या सबको तेरी कोताही ही दिख रही ?
फिर दोष क्यों नहीं दे रहे तुम औरों को
क्या तुझे भी साड़ी खामिया खुद में ही दिख रही ?
मत कर खुद को निचा अपनी ही नज़र में
उठा एक कागज और कलम
लिखना सुरु कर तू मगन में,
कलम के स्याही को बना तू धारा
आजाद कर तू खुद को , स्वयं के ही बंधन से
बहा दे कागज पे सब कुछ
वही बनेगा तेरा सच्चा सहारा
मन संभाले संभल नहीं रहा अब
क्या करे ?
नियति ही ऐसी है , जो हाथ में नहीं रहा अब हमारे
क्या करे ?
नहीं होना था जो , पर हो गया अब
क्या करे ?
क्या करे ? जब सच सामने है ,इसे अपनाया नहीं जाए ?
और क्या करे ?
नहीं है कोई साथी साथ देने वाला ?
दो तुम कलम को सहारा
डूब जा तू ख्यालो में
समां जा बीती यादो में
मिलेगी तुझे प्रेरणा लिखनी की
लो एक कागज ,फिर डूबो तुम चेतना में
और बह जाने दो अपने भाव की धारा
कितना अनोखा है कागज और कलम का रिस्ता
एक के बिना दूसरा अपूर्ण है लगता ,
तुम भी लाओ इन दोनों को समीप
लिखो कुछ , मिलन कराओ इनके बीच
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