तेरे मेरे दर्मिया कुछ तो है जो बाकि है,
इक आरज़ू मेरी इक इलित्जा बाकि है।
कहने को मेरे पास मसाईल-ए-समंदर है,
तुम्ही को मेरी दास्तां सुनानी बाकि है।
है अगर यही तो मेरी आखिरी तमन्ना है,
हयात-ए-वस्ल-ए-नक़्श अभी बाकि है।
हर चाहत पे मेरी इंतिख़ाब बस तू ही है,
तुझे पाने की हर उम्मीद अभी बाकि है।
हर चेहरे मे तेरा अक्स नज़र आता है,
कोई तसवीर तेरी दिल मे अभी बाकि है।
अर्सा हुआ हिज्र-ए-जा बीत गए साल है,
दश्त-ए-सफर-ए-जुस्तजू अभी बाकि है।
महफिल में तुझे देख दानिस्ता-ए-हुस्न,
निगाह से पी लू कि प्यास अभी बाकि है।
आशिकी है सब्र भी सोचता हूँ तेरे साथ,
शाम हर गुज़ार लू जिंदगी जो बाकि है।
किताब-ए-इश्क-ए-'विनोद' पढ रहा बारहा,
तू मिला नहीं कही जो जिंदगी-ए-साकि है।
दास्तां-ए-हबाब तो पल ही मे फना तो क्याँ,
हुज़ुर मेरी ख्वाहिश इक जिदंगी मे बाकि है।
मसाईल-ए-समंदर-many problems,
हयात-ए-वस्ल-ए-नक़्श-print of meeting of life.
इंतिख़ाब-choice, अक्स-reflection,
हिज्र-ए-जा-separation from beloved.
दश्त-ए-सफर-ए-जुस्तजू-Search while travelling in desert.
दानिस्ता-ए-हुस्न-see beloved unknowingly.
बारहा-repeatedly, जिदंगी-ए-साकि-my life,
दास्तां-ए-हबाब- life of bubble.
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