तस्वीर.....
आज कुछ पुरानी तस्वीरे हाथ मे आयी थी। एक-एक करके पलटती तस्वीर मानो कई सदियों की कहानी कह रही थी। उन तस्वीरो से बदलते हुए मंज़र की सदा जैसे कानो से सर-सर गुज़र रही थी।
हयात-ओ-तकदीर को तीर की तरह चीरता वक्त अपने निशाँ-ए-पा बे-खबर छोड़ जाता है आैर हम उसकी मौज मे बहे चले जाते है।
कुछ पोशिदा तसवीरे मेरे दिल के आईने मे कभी-कभी उभरते नज़र आती है, और उनकी शेख-अदाओ की शीर कहानी कहती है। यक जब ख्याल आता है, वो माझी था, कही खो गया हूँ तो रूह काँप उठती है। कैसे-कैसे तरकीबे कर समझाता हूँ कमबख़्त दिल-ऐ-मरहूम को। अपने ही डर को कैसे काबू रखे, ये मुमकिन न सही मुश्किल तो है।
शायद दिल को कही न कही सुकुन है वो दरमियाँ न सही ख्याल-ओ-ख्वाबो में सही।
आरज़ू को इतनी हवा न दे दिल-ऐ-मरहूम,
सफीने मोहब्बत के फिर से रवा हो जाये।
किसी को दिल मे बसा रखा है। जी रहा है वो मेरे ही मे कही, क्या इतना काफी नहीं जीने के लिए.....
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