रंगी मिज़ाज और शिकायत गर करे तो क्या,
हम ने भी दिल मे ठानी है गर महज़बी तो क्या।
तेरे दिल के पास रहकर हमने सीखा क्या,
जी लो दुनिया शौक़ से ही और रखा है क्या।
दिल की हर इक वादियों मे अब मिलेगा क्या,
ख्वाब गहरे और सुनहरे दर्मिया और क्या।
कितनी ही है मुख़्तसर सी आरज़ू तो क्या,
शाम उनके ज़ुल्फ मे गर न भी हो तो क्या।
हर तलब और आशिकी की इंतेहा है क्या,
दिल ही दिल मे कशमकश गर वो नहीं तो क्या।
कैसे-कैसे ख्वाब है और जुस्त-जू है क्या,
कल मिला था दैर पर अब आरज़ू है क्या।
ख्वाब के है कुछ दरीचे और नमी है क्या,
उनकी हर इक ही अदा है शोख़-ए-दिल तो क्या।
उनकी हर इक ही अदा पे दिल फिदा तो क्या,
कोई मुझको ये बता दो कि अब करे तो क्या।
दूर भी और पास भी और ख्वाब मे भी क्या,
हर जगह अब तू ही तू है माज़रा है क्या।
शक्ल पर ही लिख रखा है आरज़ू है क्या,
पूछता है हर किसी को जुस्त-जू है क्या।
मय-कदा कांधे पे मेरे गम की हद है क्या,
हिज्र के नश्तर भी है घर और दवा है क्या।
शाम के जलते अंगारों मे धुआँ है क्या,
रात आधी है 'विनोद' और चाँद भी है क्या।
जिदंगी के हाल पर और कहता भी तो क्या,
जी रहा हूँ शब-हा हाय! और दुआ है क्या।
जुस्त-जू है इक भरम गर तू नहीं तो क्या,
तुझको पलको पे ही रखकर ख्वाब है और क्या।
महज़बी-Beautiful; शौक़- love;
मुख़्तसर-brief/small; जुस्त-जू - Search;
दैर-place of worship;
आरज़ू - desires; दरीचे -window;
शोख़-ए-दिल- young/naughty heart.
मय-कदा - Liquor ; हिज्र- separation;
नश्तर-injection.
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