आज सुबह,
फिर गुज़रा मैं c p से।
पता न था कि,
निकलना पड़ेगा वहां से।
कि पड़ाव है वो भी,
मंज़िल का एक।
कि, दिख गया अचानक
Inner circle पे n block का बोर्ड।
बरबस उठ गए हाथ,
उसकी तरफ।
निकल पड़ा मुंह से,
ओ n block.
उबल आये अश्क़,
छलक पड़े आँखों से।
और फिर सिसक पड़ा c p,
सुबह के उस मटमैले उजाले में।
मानो कोई विधवा,
रो रही हो जैसे।
किसी ने सही ही चुना है,
सफ़ेद रंग उन दीवारो के लिए।
जानो कोई कब्रगाह है c p
हर ब्लाक में दफना जाते हैं लोग कुछ यादें।
और ये किसी विधवा सा c p
सुबकता रहता है उन यादो के लेके।
अश्वत्थ
2-oct-2015
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