• Published : 13 Oct, 2015
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आज सुबह,

फिर गुज़रा मैं c p से।

पता न था कि,

निकलना पड़ेगा वहां से।

कि पड़ाव है वो भी,

मंज़िल का एक।

कि, दिख गया अचानक

Inner circle पे n block का बोर्ड।

बरबस उठ गए हाथ,

उसकी तरफ।

निकल पड़ा मुंह से,

ओ n block.

उबल आये अश्क़,

छलक पड़े आँखों से।

और फिर सिसक पड़ा c p,

सुबह के उस मटमैले उजाले में।

मानो कोई विधवा,

रो रही हो जैसे।

किसी ने सही ही चुना है,

सफ़ेद रंग उन दीवारो के लिए।

जानो कोई कब्रगाह है c p

हर ब्लाक में दफना जाते हैं लोग कुछ यादें।

और ये किसी विधवा सा c p

सुबकता रहता है उन यादो के लेके।

 

अश्वत्थ

2-oct-2015

About the Author

Himanshu Sharma

Joined: 01 Sep, 2015 | Location: , India

Hello,I am a poet, an arist living in new delhi.I strongly believes in simplicity....

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