• Published : 04 Oct, 2015
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बहुत भीड़ भरा दिन था वो,

जब हम गुज़र रहे थे एक साथ

C P के उन गलियारों से।

मैंने अपना बायां हाथ

रख रखा था तुम्हारे बायें कंधे पे,

और दायें से पकड़ रखा था,

दाहिना हाथ तुम्हारा।

न जाने तुम्हें भीड़ से बचाने के लिए

या बस अपने नज़दीक रखने के लिए।

भीड़ को चीरते हुए

रास्ता बना रहे थे हम।

बढ़ रहे थे ऐसे मानो

जाना हो तारो के पार।

मैं समझा रहा था तुम्हें,

बातें मनोविज्ञान की।

बता रहा था तुम्हें कि

ऐसा मानते हैं मनोवैज्ञानिक कि,

जो शख्श बोलता है बार बार कि-

बहुत प्यार करता हूँ तुम्हें।

असल में वो ही नहीं करता 

रत्ती भर भी।

और जो बोलता नहीं है कभी,

हकीकत में वही करता है सब से ज्यादा।

फिर चुटकी लेते हुये कहा था मैंने-

Hence it has proven that I dont love you.

क्योंकिं बार बार बोलता था मैं तुमसे-

I love you.

हमारी बातें सुन रही थी

बराबर से गुज़रती एक लड़की।

और फिर देख हमारी ओर

मुस्कुरा दी थी वो।

जानते हो वो क्यों मुस्कुराई थी?

वो जानती थी कि झूठ बोल रहा हूँ मैं।

 

अश्वत्थ 

About the Author

Himanshu Sharma

Joined: 01 Sep, 2015 | Location: , India

Hello,I am a poet, an arist living in new delhi.I strongly believes in simplicity....

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