आज बरसों बाद उनसे मुलाकात हुई थी, मिलते ही शीरी-एहसास की शिकन चेहरे पर महसूस होने लगी थी।
यूँ तो फाँसला पच्चीस बरस का था, लेकिन कुछ अफसाने जेहन मे जो कैद थे, आज दरमियाँ उफान ले रहे थे। दिलो के मरासिम शायद एसे ही होते है, कई सालों के फांसले भी चंद लम्हों मे सिमट जाते है, जैसे कभी जुदा न थे।
कई मुक्कद्दसे अनकहे जुबाँ पे आ रहे थे, आँखे भी नम हो चली थी। शायद दिल की कश्मकश होगी जो कितने सालों का फाँसला तय कर चुकी थी।
कब तक कोई पुराने सिलसिले समेट सकता है, फिर वही जिदंगी की ताज़ा कश्मकश के किस्सो की गफतगु मे ही शाम हो चली थी, बातों ही मे पता नहीं चला।
अपने-अपने राह के जानिब कदम लौट पडे़ थे, एक और मुलाकात के वादे के साथ। आँखों मे रूकी नमी भी अब छलक पड़ी थी।
आखिर कौन कब तक साथ निभाता है, चंद लम्हों की मुलाकात का ये एहसास तो मिलने से बेश्तर ही मुझे था......
मरासिम- relations; दरमियाँ- in between; मुक्कद्दसे- stories;
जानिब- towards; बेश्तर- before.
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