मोहलत.....
आज के बिखरे हुए काम का बोझ कल पर डालकर के शब सुकुन से सोया था। कल सहर होगी इसकी खबर शब मेरे जेहन ही मे ना थी शायद खुदा को मंजूर होगा दीदा-ए-आफ़ताब।
मंज़र-ए-सहर कि जेहन मे कल के वजूद का कतरा भी मयस्सर ना था, पल भर मे महसूस हुआ शायद खुदा ने एक ही दिन बख्शा है कुछ करने को।
सोच के दिल भरा जा रहा था कि एक दिन की मोहलत क्या मिली, सालो की बंदिश कर ली जमाने से, किताब-ए-तरकीब भी लिख दी।
आज यक ही समझ मे आया कि ये किताब-ए-हयात का सफ़्हा सिर्फ एक रोज़ का है, फिर सहर होते ही अगला पन्ना जुड़ जाता है
मिली है जिदंगी इक दिन की उधार,
जी ले या उसको ही कर ले तू याद,
पल का पता है ना कल की खबर,
कल होगी ना होगी फिर तेरी सहर।
दिन मे ना जाने कितने ही पल गुज़रते है, हर पल का अगला पल भी शायद खुदा की सारी तरतीब ही है।
जब जिदंगी एक पल या एक दिन की है फिर कौन मेरा अपना है और कौन पराया, ये सोच के दिल भर जाता है.....
मोहलत (مہلت)- respite, time, leisure
शब-night
जेहन - mind
दीदा-ऐ-आफ़ताब - sight of sun
मंज़र-ए-सहर - situation of morning
वजूद -life, existance.
कतरा- drop, small
मयस्सर - available
बंदिश -plans, restrictions.
किताब-ए-तरकीब - book of works
किताब-ए-हयात - book of life
तरतीब -arrangements
सफ़्हा (صفحہ) -a page of a book, face
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