आज फिर किया इंतज़ार तुम्हारा,
खड़े हो U C B के बाहर।
उसी जगह
उसी दीवार पर टेक लगा
जहाँ करता था हर बार इंतज़ार।
सफ़ेद दीवारें ठंडी मालूम पड़ी थीं
फूँक दी है गर्मी उनमें तुम्हारे प्यार की।
जाकर चूमा था उस दीवार को
मानो कोई चौखट मंदिर की चूमे जैसे।
छू के महसूस किया लम्स उसका,
तुम और अंदर उतार गए।
सैकड़ो लोग गुज़रे बराबर से
पर कोई अक्स तुम्हारा न था।
लोग गुज़र रहे थे हाथो में हाथ थामे
और मैंने थाम रखा था अपना हाथ
अपने ही दुसरे हाथ से।
फिर यूँ हुआ कि याद आ गयी मुस्कान तुम्हारी
फ़िज़ा में एक खुशबु सी फैल गयी थी फिर।
U C B के काले बोर्ड पर सफ़ेद रंग से लिखा है नाम उसका।
बड़ी ब्लैक एंड वाइट है ज़िन्दगी।
न जाने कब से खड़ा है U C B वहां
न जाने कितने लोगो ने किया होगा इंतज़ार वहां।
न जाने।
पर हाँ पोत आया हूँ प्यार का रंग उस दीवार पे।
कभी जाओ तो उस दीवार को छू कर महसूस करना।
क्योंकि, रंग प्यार का है जिस्मानी आँखों से दिखाई नहीं देगा।
अश्वत्थ
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