हर पल मे गुज़री है जैसे साँसे है जिदां हूँ जैसे,
चंदा की चाँदनी हाे रातो मे घुलती हो जैसे।
तेरी ही आखों मे जैसे पूरा हो आकाश जैसे,
ज़मी-ओ-फलक मिल रहे है बनकर के इक ख्वाब जैसे।
तमन्ना हो कोई अधूरी आकर के कहती हो जैसे,
कोई बात तेरे लबों पर आकर के रूकती हो जैसे,
तेरी ही आँखों से चलकर है आशियाँ एक जैसे,
बनता गुहर जैसे कतरा सागर मे गिर के हो जैसे।
तेरी निगाहो से मुझको आया हो पैगाम जैसे,
दिल से ही निकली दुआ है या अरमाँ हो कोई जैसे।
तेरी ही महफिल हो जैसे मै आ गया हूँ कि जैसे,
कोई दूर रहबर हो जैसे बुलाता हो मुझको ही जैसे।
तू रहा चाँद और मै ज़मी जी रहा हूँ मै अब कैसे जैसे,
मुक्कमल है सारा जहाँ और कतरा हूँ मै थोड़ा जैसे।
शिकवे है दिल मे हज़ार कहता मगर तुमको कैसे,
जो राहो पे चलता रहा मै मंजिल जो आती भी कैसे।
मेरे ही दिल का कोई रंग बिखरने लगा हो कि जैसे,
गुज़री है मसरूफियत मे हयात-ए-किताब हो कि जैसे।
तेरी गली से गुज़र के लौटा हूँ शब हाय कैसे,
गुज़रा हुआ वक्त जैसे लौटा है फिर आज जैसे।
महफूज़ था कि मै एेसे घनेरी सी जुल्फों मे जैसे,
गो मशगूल था मै करम से न गाफिल था मजबूर जैसे।
बेखुद हुआ हूँ मैं एेसे कि तेरा करम हो कि जैसे,
विनोद-ए-जुनूँ दूर जैसे खिज़ाँ का ही आलम हो जैसे।
गुहर-pearl
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