घबराना मत
घबराना मत गर कभी आऊँ मैं,
ख्वाबो में तुम्हारे।
और खुल जाए आँख तुम्हारी।
एक हूक सी उठे सीने में,
उबल आयें अश्क़ आँखों में।
चाह हो एकदम से छूने की मुझे,
आये ख्याल कि,
पास होता मैं तो अच्छा होता।
समझा लेना दिल को,
बहला लेना किसी भी तरह।
कि बहुत रातें काटी हैं मैंने भी,
इसी तरह।
याद कर तुम्हें
तकिया सीने से लगा कर सोया हूँ मैं।
सुबकता रहा हूँ बिस्तर पर,
घंटो तक।
चादर की गूंगी सिलवटें,
तकती रहीं हैं मुझे बेबसी से।
बड़े अर्से तक ये वक़्त
मेहमां था मेरे यहाँ।
थोड़ी देर पहले ही
निकला है घर से मेरे।
देर सवेर पहुँच ही जायेगा
यह घर भी तुम्हारे।
अश्वत्थ
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