दास्तां-ए-मोहब्बत क्या कहता मै तुमसे,
जो कह न सका बात थी कब राज़ तुमसे।
कहने को हर शैय़ मिली है जहाँ मे,
जो छूटी वो मज़िल थी कब दूर तुमसे।
साज़-ए-मोैहब्बत के है गीत दिल मे,
जो सुन न सके हाय लब कहते थे तुमसे।
दोराहे पे चल के कब मिलते है अपने,
जो राह हा हमारी कब छूटी वो तुमसे।
जुदा हाे के कब तक मैं जीता जहाँ मे,
जो वादे पे जीता थी कब आस तुमसे।
राह-ए-उल़्फत मे हमने जो खाई थी कसमें,
जो वादे थे अपने कब कसमें थीे तुमसे।
सवाल-ए-मोहब्बत थे दिल और दिल मे,
जो करता सवाल कब जवाब था तुमसे।
कहते ही रहे इश्क दिल और दिल मे,
जो कहते जुबाँ हा मोहब्बत थी तुमसे।
"विनोद" और शिकवे बता है जो दिल मे,
जो रखता गिला कब शिकायत थी तुमसे।
ढुँढू कही मुुझमे दिल की मै धड़कन,
हर शब है तुम्ही से चरागाँ भी तुमसे।
जीता रहा भूल कर भी मै तुमको,
बिछड़ के भी जाना ना हूँ दूर तुमसे।
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