• Published : 01 Sep, 2015
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एक आग सी फैली है साबरमती के किनारे

जवान खून पिघला है आरक्षण के बहाने !!

महत्वकांक्षाओं के पतंगों  ने सारे शेहेर में ज़हर घोल है !

चलने के हुनर को आरक्षण की बैसाखियों के सहारे छोड़ा है !!

एक वो थी जवानी जो सरहद पे लुटाई !

एक यह है जो बहते पानी सी यूँ ही गवाई !

एक उठी थी कौम को जगाने !
एक चली है सबको अपाहिज बनाने !!

काबिलियत जहाँ गर्व है हमारी पीड़ी की !

आरक्षण एक पीड है मेरी जवान नसल की !!

किसी गैर की थाली की रोटी छीन के भूख नहीं मिटती !

आगे बढ़ने की सीढ़ी ,किसी के कंधो पे चढ़ के नहीं मिलती !!

बनता है सोना भी आग में पिघल के !  

बेवजह कोयले की भी कोई कीमत नहीं होती !!

हुनर की भट्टी में देखकते अंगारे अपना वजूद बनाते है !
बेवजह खैरात से किसी की शान नहीं बनती !!

About the Author

Amit Tewari

Joined: 19 Jul, 2015 | Location: , India

I am a Software Engineer and   DU Computer Science pass out.. I watch world with curiosity, like to weave situations in my words.Love to imagine things, love to argue with myself , improve as a person, sing a song, write a song, write ...

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