तेरे घरोंदे में आना मेरा, जाने क्यों क़र्ज़ हो गया !
खाली रीलों से ,कच्चे धागो से मेरा दामन सीया गया !
छज़्ज़ो पे तेरे, टूटा कोई किनारा मैं बन गई !
मिट्टी मेरी हस्ती तेरे लिए राख होगी !!
यूँ भी नहीं मुझको गैर तूने किया!
फरमान तेरा, मेरे बदन से पर लिपटा रहा !!
हर ख़्वाब मेरा तोल के, कम मोल में बिक गया !
जो टूट गया वो मेरे भाई का हिस्सा बन गया !!
हक़ मेरा मैं पूछ के क्यों लूँ !
जो मेरा है वो छीन के क्यों लूँ !!
क्यों मेरी तालीम एहसान जताई जाती है !
बेटा तेरा संभालता नहीं, मेरी फ़िक्र बेवजह दिखाई जाती है !!
रात के चाँद पे मेरा भी हक़ है !
इतिहास के शौर्य में मेरा भी ज़िक्र है !!
क्यों किसी के रिवाज़ों के लिए फिर बलि मैं हूँ !
क्यों मेरी पहचान बस चूल्हे चौके तक हो !!
भगवान तेरा गर मर्द भी हो, तो मेरी ही कोख से जन्मा है !
वजूद तेरा मेरे तन का एक टुकड़ा है !!
न कोई फ़तवा न कोई खाप मुझसे हिसाब मांगेगा !
है आसमान मेरा भी, मेरे पंखो से नापेगा !!
बिकना मेरा जो बोझ था, शादी का बाजार वो और न लगेगा !
मेरी काबिलयत मेरा गुमान है, बराबर का मुझे अधिकार मिलेगा !!
बाग़ का कोई फूल समझ के, हर कदम जो मैं दबी !
औज़ार बन के अब अपना भविष्य खुद मैं तराशूंगी !!
हर मोड़ पे उम्मीद मुझसे लगायी, इज़्ज़त तेरे घर की सिर्फ मैने ही ढोई।
कमज़ोर थी तेरी नज़रे जो कुछ न देख पायी !!
घुंगरू की थाप सी मेरी कहानी थी !
अब आज़ादी इनसे लूँ तो खुल के नाचूंगी !!
बेटी हूँ मैने बेड़िया नहीं अब और बांधूगी !
मंज़ूरी नहीं अब बस अपनी सत्ता मांगूंगी !!
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