आज c p गया था मैं।
फिर गुज़रा उन्हीं रहगुज़ारो से,
कभी जिन्हें साथ नापा था हमने।
जहाँ पहली बार तुम्हें hi बोला था मैंने,
वहां खड़े हो फिर एक बार बोला hi,
आवाज़ होठों से निकल कर फ़ैल गयी थी फ़िज़ा में।
बैठा हर उस बैंच पर
जहाँ कभी बैठे थे हम दोनों
हाथो में ले हाथ एक दुसरे को देखते हुए।
खड़ा हुआ UCB के बाहर
उसी जगह जहाँ खड़े हो
इंतज़ार करता था तुम्हारा हर बार।
तुम नहीं आये।
पर, हर तरफ से तुम्हारी मुस्कान चली आई।
दो बार जान कर खोया chaabar
और फिर झल्ला कर कहा
ये n ब्लाक खो क्यों जाता है हर बार।
और फिर मुस्कुरा दिया तुम्हे याद कर।
Starbucks के आगे की जगह खाली नहीं थी आज
करना पड़ा था थोडा इंतज़ार।
Starbucks के कांच में देखा खुद का अक़्स
अधूरा था आज वो अक़्स।
वक़्त बदल गया है।
पर अंदर कुछ है जो बदलता ही नहीं है।
सारे c p में बिखरी पड़ी थी यादें
दोनों हाथो से समेट कर लाया हूँ उन्हें।
देर तक बैठा देखता रहा अपना खाली हाथ,
एक वक़्त था जब तुमने कस के पकड़ रखा था उसे,
और आँसू बह रहे थे तुम्हारी आँखों से।
तब डर था तुम्हे की दूर चला जाऊँगा मैं,
और आज तुमने खुद दूर कर दिया है मुझे।
आज थोडा ठंडा जान पड़ा था c p
हम बदल जो गए हैं अब।
पर हाँ उन सफ़ेद खम्बो पे
लिख आया हूँ तुम्हारा नाम ऊँगली से मैं
एक नयी आंच c p में फूँक आया हूँ मैं।
आज c p गया था मैं,
तुम तो नहीं पर हाँ तुम्हारी याद साथ थी मेरे।
अश्वत्थ
23-8-2015
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