• Published : 30 Sep, 2015
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देख कर कमीज पर जमी धूल ये पाया, तुम नहीं हो शायद,

फिर यादों के एक मीठे से झोके ने बताया, तुम यहीं हो शायद । 

देख कर बिस्तर संभला हुआ याद आया, तुम नहीं हो शायद,

फिर तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति ने समझाया, तुम यहीं हो शायद । 

देख कर मेज़ पर एक ही तश्तरी याद आया, तुम नहीं हो शायद,

फिर तुम्हारी हँसी की आवाज़ ने बताया, तुम यहीं हो शायद । 

याद है मुझको वो तुम्हारे बहाने बनाना,

मेरे सुलझे बालों को ही, सुलझाना । 

आज ये वाक़ई में उलझे हैं, और तुम रूठे बैठे हो,

सारे आसरे खत्म हो रहे हैं, तुम्हें मनाने को । 

अपने आँसूओं को देख कर ऐसा लगता है, तुम नहीं हो शायद,

वर्ना, इन्हें कोई बहाना ना मयस्सर होता, बाहर आने को । 

फिर हँसी खिलती है होठों पर, ये सोच कर कि तुम बुरा मान जाओगे,

मेरी इस सोच ने ही तो है समझाया, तुम यहीं हो शायद । 

याद आती है तुम्हारी बात, कि ज़िन्दगी जीने का बहाना दे जाती है,

तुम्हारी नन्ही सी आाँखों से भी यही बात समझ आती है । 

तुम्हारी आँखें उदास रहतीं थीं, फिर भी तुम मुस्कुराते थे,

ये काबिलियत कैसे आती है, हम ना समझ पाते थे । 

शुक्रिया तुम्हारा, तुमने हमें ये बतलाया,

इसी बहाने हमें जीने का सलीका आया । 

इसी बहाने हमें जीने का सलीका आया ।।  

About the Author

Sarika Singh

Joined: 27 Aug, 2015 | Location: , India

For me, words are the most beautiful way to express the emotions and I am fond of doing this. At present just a beginner, but wish to explore and travel on the way towards the world of writing. I write because my heart needs to speak.Profes...

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