देख कर कमीज पर जमी धूल ये पाया, तुम नहीं हो शायद,
फिर यादों के एक मीठे से झोके ने बताया, तुम यहीं हो शायद ।
देख कर बिस्तर संभला हुआ याद आया, तुम नहीं हो शायद,
फिर तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति ने समझाया, तुम यहीं हो शायद ।
देख कर मेज़ पर एक ही तश्तरी याद आया, तुम नहीं हो शायद,
फिर तुम्हारी हँसी की आवाज़ ने बताया, तुम यहीं हो शायद ।
याद है मुझको वो तुम्हारे बहाने बनाना,
मेरे सुलझे बालों को ही, सुलझाना ।
आज ये वाक़ई में उलझे हैं, और तुम रूठे बैठे हो,
सारे आसरे खत्म हो रहे हैं, तुम्हें मनाने को ।
अपने आँसूओं को देख कर ऐसा लगता है, तुम नहीं हो शायद,
वर्ना, इन्हें कोई बहाना ना मयस्सर होता, बाहर आने को ।
फिर हँसी खिलती है होठों पर, ये सोच कर कि तुम बुरा मान जाओगे,
मेरी इस सोच ने ही तो है समझाया, तुम यहीं हो शायद ।
याद आती है तुम्हारी बात, कि ज़िन्दगी जीने का बहाना दे जाती है,
तुम्हारी नन्ही सी आाँखों से भी यही बात समझ आती है ।
तुम्हारी आँखें उदास रहतीं थीं, फिर भी तुम मुस्कुराते थे,
ये काबिलियत कैसे आती है, हम ना समझ पाते थे ।
शुक्रिया तुम्हारा, तुमने हमें ये बतलाया,
इसी बहाने हमें जीने का सलीका आया ।
इसी बहाने हमें जीने का सलीका आया ।।
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