मुझमें भी है, जीने की अभिलाषा,
आने दो मुझको, तुम्हारी दुनिया में ।
मेरा जन्म है, तुम्हारे प्रेम की ही परिभाषा,
क्यों नहीं भाति मैं, तुमको आँगन में ।
क्या होता, अगर तुम्हारे लिए भी ऐसे ही फैसले किये जाते,
क्या तब भी तुम, ये खुशनुमा लम्हे जी पाते?
सोचो की जब मैं आऊँगी
साथ कितनी खुशियाँ लाऊँगी,
तुम्हारी नन्ही सी पलकों पर मासूम सपने सजाऊँगी,
अपनी मुस्कुराहट से तुम्हारी थकान मिटाऊँगी,
अपनी मीठी बातों से तुम्हारा दिल बहलाऊँगी ।
क्यों फर्क करते हो लड़का-लड़की का,
जब ईश्वर ने ही बख्शा है, ये तोहफा जीवन का ।
मैं लड़की हूँ तो क्या, हूँ जीवन की गाथा,
न होती मैं तो, क्या पूरी होती तुम्हारी अपेक्षा ।
ये कैसे करते हो,
जीवन के बदले तुम मुझे मृत्यु देते हो ।
है ख्वाहिश ये मेरी, देखूँ मैं दुनिया के रंग,
अपने पंख लगा कर, उड़ जाऊँ सपनो के संग ।
हूँ मैं परिचायक उसकी जिसको कहते हैं ‘आभा’,
मत छीनो मुझसे यूँ, मेरे जीवन की ‘आशा’
मुझसे ही बनती है 'सृष्टि की परिभाषा' ।
saarikasingh | Dated: (28 Aug 2015) | Delete
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