• Published : 02 Sep, 2015
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कितना विचित्र है ये मन मेरा

कभी शांत कभी अस्थिर हो उठता है ।

कभी पहुँच जाता बादलों के पार

फिर क्षण में धरती की ओर ।

कभी स्फूर्ति इस गति की

जैसे तीव्र पवन का वेग,

फिर थम जाता बन के आलस्य का संसार ।

कभी जलप्रपात सा अट्टहास करता

फिर नदी की निर्मल धार ।

कभी शिशु की पवित्रता

फिर मानुष के विचार ।

कभी सफ़ेद कमल के पंखुड़ियों पर पड़ी ओस की बूँद

तत् क्षणों मे गर्जन करते मेघ का बहाव ।

अविरल, सांतर

उद्यमी, आलसी

सरल, कपटी

इतने अद्भुत इसके विचार

जिसमे सारा जगत् निहित ।

 

About the Author

Sarika Singh

Joined: 27 Aug, 2015 | Location: , India

For me, words are the most beautiful way to express the emotions and I am fond of doing this. At present just a beginner, but wish to explore and travel on the way towards the world of writing. I write because my heart needs to speak.Profes...

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