
मै अँधेरी इन गलियों मे
अब तम से डरना भूल गया
यादें तेरी अब सांसों मे
मै जीना मरना भूल गया
मै बातें करता रातो मे
उस सशि से मिल्ना भूल गया
चाँद से रौशन चेहरे को
अपना भी कहना भूल गया
मेरी दुनिया बस थी तुझ मे
अपनो से भि मिलना बहल गया
तु चाहत थी या पागलपन
मै खुद से मिलना भूल गया
मेरा मंदिर-मस्जिद तुझ मे
अब पूजा करना भूल गया
तेरे कहने पर ऐ काफिर
खुदा से भि डरना भूल गया
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