जो मेघ नीर का रखवाला
फिर क्यों ये बरसा करता है
क्या आखें है जो दर्द छुपा
वो आसमान में चलता है
रोक सका वो इस गम को
तो आगे बढ़ता रहता है
जो बढ़ जाता है दर्द बड़ा
तब ही तो बरसा करता है
ठंडक देता है जग को
खुद भी तो ठंडा होता है
बाँट जहां में गम को अपने
आगे बढ़ता रहता है
है मेघ नीर का रखवाला
युहीं न बरसा करता है
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