• Published : 27 Aug, 2015
  • Comments : 0
  • Rating : 5

छोटी नदी ने पूछ लिया सागर से आज,

चुप रहने का हर पल, खोल भी दे राज़,

मैं तो सूखी रहती हूँ ग्यारह महीने,

सावन देता है बस कुछ दिन जीने,

मेरे जैसी कितनी खिलखिलाके गिरें तुझमें,

इतना प्यार पाके भी तू क्यों रहे उदास ?

 

तेरे सम्मोहन में बँधी उड़ती आऊँ ।

शहद बनूँ, लहर-लहर घुलती जाऊँ ।

तेरे सारे ज़ख़्म नमक बन गए हैं क्या ?

मैं भी तुझमें खोके अपनी खो चली मिठास ।

 

तू क्या जाने, रात चाँद कितना सताए ।

चूमके जाए पानी, छूके ना जाए ।

रहूँ शीतल उसकी मैं परछाई पकड़के,

चाहे वो भी दूर से, पर आए नहीं पास ।

 

और अमावस में वो बैरागी मेरे तीर,

धूनी रमाए, बाँटे मोसे अपनी पीर ।

जो सफ़र में मिल रहा है, साथ ले चली,

मंज़िलों पे क्या पता ना ख़त्म हो तलाश ।

About the Author

Shubhankar

Joined: 26 Aug, 2015 | Location: ,

...

Share
Average user rating

5 / 3


Please login or register to rate the story
Total Vote(s)

6

Total Reads

714

Recent Publication
Sawaal
Published on: 27 Aug, 2015
Kachchi Dor
Published on: 27 Aug, 2015
Ankahi
Published on: 27 Aug, 2015

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments