कोशिशें हज़ार की, तुझसे, मुँह मोड़ा नहीं जाता क्यों ?
कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?
जो रूठी हुई राहें हैं, वही हैं क्यों सामने ?
मैं गिरने लगा अगर, आएगा वही थामने ।
ज़रा सा बाकी रह गया जो, छोड़ा नहीं जाता क्यों ?
कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?
भीगे थे हम साथ-साथ, उस पहली मुलाक़ात में ।
बनेंगी कुछ कहानियाँ, सोचा था बरसात में ।
गीला ये यादों का रुमाल निचोड़ा नहीं जाता क्यों ?
कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?
जताएँ चाहे कुछ भी हम, तेरी कमी तो रहती है ।
जो मुझे खा रही है अगन, तू भी तो वही सहती है ।
ख़ुशी का, चेहरे पे नक़ाब ओढ़ा नहीं जाता क्यों ?
कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?
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