• Published : 27 Aug, 2015
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कोशिशें हज़ार की, तुझसे, मुँह मोड़ा नहीं जाता क्यों ?

कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?

 

जो रूठी हुई राहें हैं, वही हैं क्यों सामने ?

मैं गिरने लगा अगर, आएगा वही थामने ।

ज़रा सा बाकी रह गया जो, छोड़ा नहीं जाता क्यों ?

कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?

 

भीगे थे हम साथ-साथ, उस पहली मुलाक़ात में ।

बनेंगी कुछ कहानियाँ, सोचा था बरसात में ।

गीला ये यादों का रुमाल निचोड़ा नहीं जाता क्यों ?

कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?

 

जताएँ चाहे कुछ भी हम, तेरी कमी तो रहती है ।

जो मुझे खा रही है अगन, तू भी तो वही सहती है ।

ख़ुशी का, चेहरे पे नक़ाब ओढ़ा नहीं जाता क्यों ?

कच्ची डोर से बँधा रिश्ता, तोड़ा नहीं जाता क्यों ?

About the Author

Shubhankar

Joined: 26 Aug, 2015 | Location: ,

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