
!! कुछ मेरा कुछ तुम्हारा !!
अक्सर ये खाली मकान और सन्नाटा ,
जैसे फिकरे कसते हो |
तुम्हारी बेमौजूदगी में
सांप बनकर मुझे डसते हो |
एहसान फरामोश मेरी ही दीवारे ,
आजकल मकड़ियों से इनकी दोस्ती है
रंग रोगन मैंने करवाये इनपर |
तुम्हरे सिवा देखभाल नहीं होती ,
ये कहकर कोसती हैं
अब चौके के चारो ओर, दीमकों का जलसा हैं
बेहया सारे ,तुम्हे निकाल दिया मैंने सो धन्यवाद कहते हैं
तुम्ही करो फैसला मेरी बेक़सूरी का
आज कल हर कोई खुदगर्ज मुझे तुम्हारे बाद कहते है |
कभी जहा हम बेवजह वक़्त गुजारते थे ,
वो बरामदा अब बेहद गन्दा रहता हैं
वहां का मनीप्लांट मेरी तरह,
काम खता पिता हैं
सो चुपचाप जिन्दा रहता हैं |
ओसारे पे टंगा विंडचिम ,
बुरी तरह उलझे हैं
कितना भी हवा गुदगुदाए
शांत ही रहता हैं
हां बाजु वाली मुन्नी आकर कभी
जब हम दोनों को सहलाये
तो भान पड़ता की ये आवाज़ भी करता हैं |
अरामघर दुरुस्त नजर आता हैं
तुमने जैसा रक्खा था
वैसा ही हैं
बस!अब आराम वह नदारद हैं
२०० करवटें उफ़! सोना भी
कैसी कवायद हैं
पर सोचता हूँ ,खुश न तुम न
मैं इस हालत मैं
हम दोनों के अहम का अंश हैं
रूठें हैं हम जिस भी बात में
तो क्यों न बाँट ले
आधा आधा ये इलज़ाम हमारा
सच तो यही हैं ,इसमें हिस्सा दोनों का हैं
!!कुछ मेरा कुछ तुम्हारा !!
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