• Published : 06 Sep, 2015
  • Comments : 0
  • Rating : 4.79

ओढ़ चांदनी घूँघट ,जब निशा आई

आगमन की आहत वो थी जो झींगुर का संगीत था,

चाँद उजियाला लिए आ रहा मनमीत था।

गोधूलि बेला  द्वार आ किवाड़ खटकने लगी,

माध्यम शीतल पवन जब बाल सहलाने लगी।

ओढ़ चांदनी घूँघट ,जब निशा आई।

शाम कुछ सहमी सी थी बादलो की ओट में,

संतोष का अम्बर था उस शाम मिलती नोट में।

सोंध नारंगी अदाए पश्चिम में लगी थी उमड़ने,

गृह रसोई एक बार फिर लगी थी संवरने।

कुछ जड़ था कुछ चेतन था ,

कुछ थमा हुआ गतिमान हुआ।

ओढ़ चांदनी घूँघट ,जब निशा आई।

About the Author

Ankita Yadav

Joined: 18 Aug, 2015 | Location: , India

...

Share
Average user rating

4.79 / 7


Please login or register to rate the story
Total Vote(s)

8

Total Reads

722

Recent Publication
Jab Nishaa Aai
Published on: 06 Sep, 2015
Angoothi
Published on: 06 Sep, 2015
Adhuri Barsaat
Published on: 06 Sep, 2015

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments