आज जब भी पियानो बजने बैठती हू
मेरी नजरे टिकी होती है ,
उस पर नहीं
पर
मेरी अनामिका में जड़े उस नग पर ।
मेरी उंगलियां ,
नाचती है किसी और की धुन पर
मानो उस दिन उस गोले ने बाँध दिया हो ,
मेरी उंगली नहीं
मेरे आसमान को..
पथ पर गतिमान पैरो को।
और उसपे जड़े नग ने सोख ली हो,
मेरी आँखों से चमक
और
मेरे सपनो से स्याही।
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