• Published : 06 Sep, 2015
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आकाश से बरसा प्रेम राग

तृप्त करता धरा के जिस्म के दर्रो को

जो आज बस

दो अलाप में स्वाहा हो

छोड़ तड़पता

निमुस गया।

भीगी परते अंतर झूरा

असमर्थ मंदे सुर

सुध और किसी प्रियतम की लेने

रज कर शीतल

 मन छोड़ गया।

पौधों की प्यासी जड़े

और तन पे चिपकी बूंदे

कही गपशप में याद आये फ़साने में

लगता है अपनो की आत्मगाथा सुनाने

आज सावन रो गया।

 

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Ankita Yadav

Joined: 18 Aug, 2015 | Location: , India

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