ज़िंदगी की तलाश में निकला था,
पर जीने का वजह ना मिली,
बेगुनाह था तो माफी ना मिली,
गुनाह किया तो सज़ा ना मिली;
सागर किनारे रेत से सीखा,
वजूद आते जाते लहरों की मोहताज़ है,
कल का तो सिर्फ़ इंतेज़ार है
ज़िंदा तो हम आज हैं..
हम तो उनमें खोने को राज़ी थे,
पर क्या करें उनकी रज़ा ना मिली,
ज़िंदगी की तलाश में निकला था,
पर जीने का वजह ना मिली…
एक वक़्त था जिसमें सौ खुशियाँ थी,
यूँ तो उस वक़्त में भी कुछ गम थे,
कुछ आँसू थे कुछ हँसी थी,
पर उन हर एक लम्हों में कहीं हम थे…
यूँ तो मजबूरियाँ ही चाहते थी, पर
ना जाने कब से हम चाहतों से मजबूर थे,
ज़िंदगी उड़ान मे थी, हम भी मगरूर थे,
जब पैरों ने ज़मीन को छुआ,
पता चला हम खुद से कितने दूर थे…
खुदको छोड़ खुदा ढूँडने चला,
ना खुदा मिला ना खुदसे मिले,
मंदिर मस्जिद गिर्जा में जिसे हम ढूँढ
रहे थे - व्हो तो इंसान की बस्ती में मिले;
खुशियाँ यूँ तो बाज़ारों में बिक रहीं थी
पर उनमें
ना जाने कितनों के कितने गम थे,
चेहरे तो मुस्कुरा रहे थे
आँखे फिर भी नम थे;
हर आंशु की वजह में कहीं ना कहीं हम थे
कभी थोड़े ज़्यादा, तो कभी थोड़े कम थे…
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