• Published : 27 Aug, 2015
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उजली सी किरनों में 

मेरे हिस्से की चंद धूप नहीं 

उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारे 

खज़ानों में महरूमियाँ बहुत हैं ।

 

लाभ - हानि,जीवन-मरण

वक्त के पलड़े में हैं भार से 

उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारे 

सौदों में कठिनाइयाँ बहुत हैं ।

 

समय के डेरों में 

बंजारों से घर बदलते रहे 

उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारें 

आईनों में सच्चाइयाँ बहुत हैं ।

 

रिश्तों के किरदारों में 

मिश्री से घुलते रहे जीवन भर 

उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारी 

मिठास में कड़वाइयाँ बहुत हैं ।

 

चालें और शह मात 

शतरंज के से मोहरें हैं 

उफ्फ़ ज़िन्दगी , तुम्हारी 

सादगी में गहराइयाँ बहुत हैं...!

About the Author

Parul Tomar

Joined: 25 Aug, 2015 | Location: ,

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