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उजली सी किरनों में
मेरे हिस्से की चंद धूप नहीं
उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारे
खज़ानों में महरूमियाँ बहुत हैं ।
लाभ - हानि,जीवन-मरण
वक्त के पलड़े में हैं भार से
उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारे
सौदों में कठिनाइयाँ बहुत हैं ।
समय के डेरों में
बंजारों से घर बदलते रहे
उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारें
आईनों में सच्चाइयाँ बहुत हैं ।
रिश्तों के किरदारों में
मिश्री से घुलते रहे जीवन भर
उफ्फ़ ज़िन्दगी, तुम्हारी
मिठास में कड़वाइयाँ बहुत हैं ।
चालें और शह मात
शतरंज के से मोहरें हैं
उफ्फ़ ज़िन्दगी , तुम्हारी
सादगी में गहराइयाँ बहुत हैं...!
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