• Published : 27 Aug, 2015
  • Comments : 7
  • Rating : 4.4

सीमाहीन

पगडंडी पर

चलती रही तुम्हारे साथ

जीवन  भर   तुम्हारी

शक्ति  ,ज्योती और

गति   बनकर......

बही हूँ

प्रबल-प्रवाह सी

तुम्हारें क्षीण पलों में

अनंत  दिशाओं  सी

असँख्य क्षणों की

सहचर बनकर......

माँ, सखी

बान्धवी, वधू

बेटी और  प्रिया

इन  सभी  रूपों  में

बार- बार मैं आती

रही हूँ  ढलकर.......

फिर क्यों

आकाश गंगा

के उस सुनसान तटपर

मैं बिखर रही हूँ आज

तुम्हारी अँजुरियों से

रेत सी झरकर......! 

About the Author

Parul Tomar

Joined: 25 Aug, 2015 | Location: ,

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