• Published : 30 Sep, 2015
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तुझको देखा है

भोर की सुनहरी धुप की किरणों में,

अलसाये हुए अधखुले फूलों में,

बारिश से नम् पत्तों पे ओस की बूंदों में,

पंछियों की चहचाहट में,

अल्हड़ नदी की इठलाती लहरों में,

डूबते सूरज से रंगीं शामों में,

और रेशमी रातों के अंधेरों में,

तुझको देखा है..

कई बार आईने से झांकते अपने ही अक्स में,

सब्ज़ पेड़ों की घनी शाखों की गहरायी में,

अश्कों से भरी आखों में, तुझको देखा है

रेशमी धागे से बंधे खतों में

और हर उस चीज़ में जिसपे निगाह

रुकी और वहीँ  ठहर गयी,

महसूस किया है तुझे,

नर्म बिस्तर में बनी क्वाहिशों की सिलवट में,

तकिये में बने क्वाबों के टिब्ब्बों में,

उस लिबास में जो  भेजा था तुमने मुझको

तेरे जिस्म की कशिश आज भी है,

हवाओं की सरसराहट में है एहसास तेरा,

मेरी सांसों में तेरी सांसों की महक आज भी है ,

बारिश की ठंडी फुहारों में बसी हैं यादें तेरी,

चाँद की जवां रातों में वो तपिश आज भी है,

आज भी तसव्वुर तेरा हर लम्हे में नज़र आता है,

तू नहीं तो क्या  उसी से जी बहल जाता है,

देखा है तुझको महसूस भी किया है मैंने

फर्क इंतना है कि अभी तक तुझको न छूया है मैंने

About the Author

Tikuli

Joined: 10 Aug, 2015 | Location: , India

Brought up in Delhi in a family of liberal educationists Tikuli is a mother of two sons. She is also a blogger and author. Some of her short stories and poems have appeared in print and in online journals and literary magazines including Le Zaparougu...

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