आज बड़े दिनों बाद ज़िन्दगी तुम मिली हो मुझसे,
आओ करें कुछ गुफ्तगू
दोपहर की नरम धुप में बैठकर
बुने कुछ गलीचे रंगों से सराबोर,
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में.
आओ आईने से झांकते अपने ही अक्स में
ढूंढें खुदको या फिर युहीं ख्वाहिशों की
सिलवटों में एक दूसरे को करें महसूस,
या फिर याद करें उन भीगी रातों में
जुगनुओं का झिलमिलाना,
आओ खोलें खिड़कियां मन की
हों रूबरू खुदसे,
पिरोएँ ख्वाहिशें गजरों में
भरें पींग, छुएं अम्बर को,
आओ पूरे करें कुछ अधूरे गीत
छेड़ें कुछ नए तराने,
आओ बिताएं कुछ पल साथ,
देखें सूरज को पिघलते हुए
इस सुरमयी शाम के साये तले,
आओ चुने स्याही में लिपटे सितारे,
बनायें इस रात को एक नज़्म,
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में|
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